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Bhagavad Gita: Adhyay 2, Slok 47 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ अर्थ: तुम्हें अपने निश्चित कर्मों का पालन करने का अधिकार है लेकिन तुम अपने कर्मों का फल प्राप्त करने के अधिकारी नहीं हो, तुम स्वयं को अपने कर्मों के फलों का कारण मत मानो और न ही अकर्मा रहने में आसक्ति रखो। Bhagavad Gita: Adhyay 6, Slok 35 असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् । अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते अर्थ: भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा-हे महाबाहु कुन्तीपुत्र! जो तुमने कहा वह सत्य है, मन को नियंत्रित करना वास्तव में कठिन है। किन्तु अभ्यास और विरक्ति द्वारा इसे नियंत्रित किया जा सकता है। StudyWithNotes SWN | First Year Indus University CSE Section